बूढ़ी काकी कहानी का सारांश : Boodhi Kaki Summary in Hindi

 प्रिय पाठकों, नमस्कार 

मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आज का लेख आपको निश्चित तौर पर भावुक कर देगा। इस लेख का शीर्षक है "बूढ़ी काकी"। मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी गई 'बूढ़ी काकी' एक ऐसी कहानी है जो हमें समाज के गहरे राज़ और उसमें प्रदर्शित समस्याओं को समझाने के लिए प्रेरित करती है। इस कहानी में व्यक्त की गई घटनाओं के माध्यम से लेखक ने उस समाजिक विचारधारा को प्रस्तुत किया है जो हमारे समाज के कई पहलुओं को दर्शाता है।

बूढ़ी काकी कहानी का सारांश। Boodhi Kaki Summary in Hindi

पाठ का नाम - बूढ़ी काकी 
पाठ का लेखक - प्रेमचंद 
पाठ की विधा - कहानी

बूढ़ी काकी के मुख्य पात्र 

 इस कहानी के कुछ मुख्य पात्र निम्नलिखित हैं - 

  • बूढ़ी काकी -
    कहानी की मुख्य पात्र, एक बुजुर्ग महिला जो अपने भतीजे के परिवार के साथ रहती हैं। 

  • बुद्धिराम - 
    बूढ़ी काकी का भतीजा, जिसने काकी की सारी सम्पत्ति हड़प ली है और उस वक़्त वादा किया कि अच्छे कपड़े, भोजन देंगे जबकि काकी आज एक अन्न पाने के लिए भी तरसती रहती है।

  • रूपा -  
    बुद्धिराम की पत्नी, जो हमेशा बूढ़ी काकी के प्रति असंवेदनशील और कठोर है। वह काकी की ज़रा भी देखभाल नहीं करती है जबकि ज़मीन अपने नाम कराते वक़्त ख़ूब बढ़ चढ़ के कह रही थी की काकी आपके सिवाय और है ही कौन मेरा इस दुनिया में।

  • लाडली -
    बुद्धिराम की बेटी, जो अपने माता-पिता के विपरीत, बूढ़ी काकी के प्रति स्नेहशील और दयालु है।


बूढ़ी काकी कहानी का सारांश

कहानी का प्रारंभ बूढ़ी काकी की कठिन परिस्थितियों से होता है। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपने भतीजे बुद्धिराम को दे दी थी, इस शर्त पर कि वह उनकी जीवन भर देखभाल करेगा। लेकिन समय के साथ, बुद्धिराम और उसकी पत्नी रूपा बूढ़ी काकी की देखभाल में लापरवाही बरतने लगे। बूढ़ी काकी को खाने-पीने के लिए भी तरसना पड़ता था।
कहानी में एक दृश्य आता है जब घर में एक उत्सव हो रहा होता है और बूढ़ी काकी को स्वादिष्ट भोजन की खुशबू मिलती है। भूख से परेशान बूढ़ी काकी अपने आप को रोक नहीं पाती और चोरी से रसोई में पहुंच जाती है। वहां वह बर्तनों में हाथ डालकर कुछ खाने की कोशिश करती है, लेकिन पकड़ी जाती है। तत्पश्चात बूढ़ी काकी का हाथ पकड़ के घसीट कर घर के एक कोने में रख दिया जाता है और कहा जाता है कि जब तक सारे मेहमान खा न ले तब तक अपना ये मनहूस शक्ल नहीं दिखाना। जैसे ही मेहमान खाना खा ले मैं (रूपा) ख़ुद बुलाने आ जाऊंगी। काकी ख़ामोश होकर मेहमानों के खाने का इंतज़ार कर रही थी। गरम-गरम पूड़ियाँ, कचौड़ियाँ इत्यादि का सुगंध काकी को अपने ओर आकर्षित कर रहा था। मगर काकी क्या करे इन सुगंधों का ?
मेहमानों ने भरपेट खाया। काकी इंतज़ार कर रही थी कि रूपा अब आएगी बुलाने...! परन्तु घंटों बीत गए रूपा नहीं आई। 
सहसा उनके कानों में आवाज़ आयी - "काकी उठो; देखो मैं तुम्हारे लिए पूड़ियाँ लायी हूँ। काकी से लाडली का आवाज़ पहचानने में देर न हुई। 
काकी - अम्मा ने दी है ?
लाडली - नहीं ये मेरे हिस्से की है। 
काकी पूड़ियों पर ऐसे टूट पड़ी मानो वर्षों बाद पूड़ियाँ खा रही हो और संयोग से ये सच भी था। 
लाडली - काकी पेट भरा ?
काकी - नहीं, अम्मा से दो-चार और मांग लाओ। 
लाडली - अम्मा सो रही है, जगाऊँगी तो मरेंगीं। 
काकी - मेरा हाथ पकड़कर वहां ले चलो जहाँ मेहमानों ने बैठकर भोजन किया है। 
लाडली कुछ समझ न सकी उसने काकी का हाथ पकड़ा और ले जाकर जूठे पत्तलों के पास बैठा दिया। 
दीन, क्षुधातुर, हतज्ञान बुढ़िया पत्तलों से पूड़ियों के टुकड़े चुन-चुन कर भक्षण करने लगी। ओह! दही कितना स्वादिष्ट था, कचौरियां कितनी सलोनी, खस्ता कितने सुकोमल।
ठीक उसी समय रूपा की नींद खुली। उसे महसूस हुआ कि लाडली उसके पास नहीं है। वह घबराई और चारपाई के इधर-उधर देखने लगी कि कहीं वह नीचे तो नहीं गिर गई। जब उसने वहां लाडली को नहीं पाया, तो वह उठकर बैठ गई। सामने का दृश्य देखकर वह स्तब्ध रह गई। लाडली चुपचाप जूठी पत्तलों के पास खड़ी थी, और बूढ़ी काकी उन पत्तलों पर से पूड़ियों के टुकड़े उठा-उठाकर खा रही थीं। रूपा का दिल बैठ गया। जैसे किसी गाय की गर्दन पर छुरी चलते देखकर वह असहाय महसूस करती, वैसा ही कुछ उस समय हुआ। एक ब्राह्मणी के लिए दूसरों का जूठा पत्तल छूना बेहद दुखद और असहनीय दृश्य था।
इस घटना से सभी परिजनों को काकी की वास्तविक स्थिति का एहसास होता है। लाडली, जो काकी के प्रति संवेदनशील है, अपनी माँ से काकी के लिए दयालुता और सम्मान की मांग करती है। अंततः परिवार को अपनी गलती का एहसास होता है और वे बूढ़ी काकी की देखभाल में सुधार करते हैं।

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पूरा कहानी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें - बूढ़ी काकी 

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