ईदगाह कहानी का सारांश : Eidgah Kahani Ka Saransh

प्रिय पाठकों, नमस्कार 
आज का लेख काफ़ी ख़ास व मार्मिक होने वाला है। इस लेख का शीर्षक है "ईदगाह"। जिसके रचनाकार कलम के जादूगर प्रख्यात मुंशी प्रेमचंद जी हैं। मुंशी जी ने ईदगाह कहानी के माध्यम से दादी और पोते का मार्मिक प्रेम को दर्शाया है। 

ईदगाह कहानी का सारांश : ईदगाह कहानी का पात्र कौनसा है ?


पाठ का नाम - ईदगाह 
पाठ का लेखक - प्रेमचंद 
पाठ की विधा - कहानी

ईदगाह कहानी का पात्र

 इस कहानी के कुछ मुख्य किरदार निम्नलिखित हैं - 

  • हामिद -
    हामिद चार-पांच साल का ग़रीब-सूरत, दुबला-पतला लड़का जिसका न तो बाप है और न ही मां। सिर्फ़ एक बूढी दादी अमीना है जो हामिद के लिए सबकुछ है। दादी ग़रीबी से लड़ते हुए हामिद का पालन पोषण कर रही है। 


  • अमीना - 
    अमीना वह अभागिन स्त्री है जिसका बेटा गत वर्ष हैजे की भेंट चढ़ गया और बहु न जाने क्यों पीली होती-होती एक दिन अल्लाह को प्यारी हो गयी। घर में न खाने को कुछ है और न ही पहनने को कुछ बचा है। अगर घर में कुछ बचा है तो वो है ग़रीबी, दरिद्रता जिससे अमीना दिन प्रतिदिन लड़ रही है मगर जीत नहीं पा रही है। 


  • हामिद के दोस्त -  
    हामिद के कुछ दोस्त महमूद, मोहसिन, नूरे और सम्मी है जिन्हें बेचारे हामिद के ग़रीबी पर ज़रा भी तरस नहीं आता। मेला में जितना हो सके उतना बेज़्ज़त करता है और अंत में बेचारा हामिद बालक हामिद से प्रौढ़ हामिद में बदल गया।   

ईदगाह कहानी का सारांश

यह कहानी है उस लाचार हामिद का जिसको यह दिलासा दिलाया गया कि उसके अब्बाजान रूपये कमाने गए हैं। वहां से हामिद के लिए बहुत सारी थैलियाँ लेकर आएंगे। अम्मीजान अल्लाह मियाँ के घर से उसके लिए अच्छी-अच्छी चीज़ें लाने गयी हैं; इसलिए हामिद प्रसन्न है। रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद आज ईद आयी है। आज का दिन बाक़ी दिन से काफ़ी अलग है। सब ख़ुशी से झूम रहे हैं बच्चे, बूढ़े सब एक जैसे हो गए हैं। अगर कोई दुखी है तो वो है अमीना जो अपने भाग्य पर रो रही है। कैसे मनेगा ये ईद ? क्यों आयी हम जैसे ग़रीबों के जीवन में ये त्यौहार ? बच्चों को रूपये चाहिए, सेवैयाँ चाहिए। कहाँ से लाएंगी इतने सारे पैसे ? किसी तरह अमीना 3 पैसे निकाल कर अपने पोते हामिद को देती है। 
सब अपने-अपने बाप के साथ ईदगाह जा रहा है। अमीना अपने कलेजे के टुकड़े को अकेला कैसे भेजेगी ? और अगर साथ गयी तो घर का काम कौन करेगा ? हामिद भीतर जाकर कहता है - "तुम डरना नहीं अम्माँ, देखना मैं सबसे पहले आऊंगा!" 
सब ईदगाह की और चलने लगे। काफ़ी चलने के बाद सहसा ईदगाह नज़र आया। ऊपर इमली के घने वृक्षों की छाया है। नीचे पक्का फर्श है, जिस पर जाजिम बिछा हुआ है। और रोज़ेदारों की पंक्तियाँ न जाने कहाँ तक चली गयी है। यहाँ कोई धन और पद नहीं देखता। इस्लाम की निगाह में सब बराबर हैं। 
नमाज़ ख़त्म हुई। लोग आपस में एक दूसरे से गले मिलकर बधाइयाँ दे रहे हैं। बाहर कई तरह की दुकानें सजी हुई हैं। लड़कों का टोली मिठाई के दुकान के तरफ़ चल देता है। सब मिठाई ख़रीद कर बड़े चाव से खाता है मगर हामिद बेचारा अपने ललचायी आँखों से उनके तरफ़ देखता रहता है इस उम्मीद से की काश एक टुकड़ा भी मिल जाये! मगर बेचारे को नसीब नहीं होता है। उसके बाद ये टोली अब खिलौने के दुकान की ओर चल देता है। तरह-तरह के खिलौने सजे हुए हैं - सिपाही और गुजरिया, राजा और वकील, भिश्ती और धोबिन और साधु। महमूद सिपाही लेता है वहीं मोहसिन को भिश्ती पसंद आया। नूरे को वकील से प्रेम है और सम्मी को धोबिन से। हामिद अपने 3 पैसे को बड़ा संभाल के रखता है वो इन मिटटी के बने हुए खिलौनों में व्यर्थ खर्च नहीं करना चाहता है। सभी बच्चे अपने-अपने खिलौनों को दिखाकर उन्हें चिढ़ाते हैं, हामिद करे भी तो क्या बेचारे के पास 3 ही पैसे तो हैं। 
बच्चों का टोली आगे की ओर चलने लगा वहीं लोहा का दुकान दिख गया। सभी बच्चे आगे बढ़ गए क्योंकि उनके लिए यहाँ कुछ नहीं था लेकिन हामिद वहां रुक गया। हामिद का नज़र सामने रखा चिमटा पे गया। उसे ख़्याल आया दादी के पास चिमटा नहीं है तवे से रोटी निकालते वक़्त हाथ जल जाता है। मोल भाव करके उसने 3 पैसे में चिमटा ले लिया। उसके दोस्तोंं ने पहले तो काफ़ी खिल्ली उड़ाया की ये क्या लाया ? इससे क्या करेगा ये कोई खिलौना थोड़े न है ? बाद में सब के सब अपने खिलौना से बेहतर चिमटा को समझने लगा। 
अब सभी लोग अपने-अपने घर की ओर चलने लगे। हामिद का आवाज़ सुनते ही अमीना दौड़ी और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देख वह चौंक गयी। 
अमीना - यह चिमटा कहाँ था ?
हामिद - मैंने मोल लिया है 3 पैसे में 
अमीना ने छाती पीट ली। कितना नासमझ लड़का है कि दो पहर हुआ, न कुछ खाया न पिया और लाया क्या चिमटा ! हामिद डरते-डरते अपराधी भाव से कहा - तुम्हारी ऊँगली तवे से जल जाती थी न इसलिए मैंने इसे ले लिया। 
अमीना का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया। यह मूक स्नेह था; खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। वह रोने लगी। दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूँदें गिराती जाती थी। 

इन्हें भी पढ़ें - 
(ii) यही सच है 
(iii) सद्गति  

दोस्तों, कैसा लगा आपको हमारा ये पोस्ट? मुझे आशा है कि आप हमारे दिए हुए जानकारी से संतुष्ट होंगे इसके बावजूद आपका कोई सलाह या सुझाव हो तो हमें ज़रूर दें। आपका हरेक कॉमेंटस, सलाह, सुझाव हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा। हमारे वेबसाइट पर इसी तरह का ज्ञानवर्धक पोस्ट साझा किया जाता है आप और भी अन्य पोस्ट को चेकआउट कर सकते हैं, धन्यवाद।


पूरा कहानी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें - ईदगाह सम्पूर्ण कहानी 

कोई टिप्पणी नहीं

Blogger द्वारा संचालित.